महाकुंभ 2025 : देवासुर संग्राम के समय देव और दानवों के आपसी समझौते के आधार पर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया गया। उस समय अमृत से पूर्ण कुंभ की उत्पत्ति हुई जिसके मूल सूत्रधार भगवान विष्णु थे। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के संकेत से इंद्र पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद असुरों ने अमृत कलश को वापस पाने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ लिया। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार के लिए देवों और असुरों में अविराम युद्ध होता रहा। परस्पर मारकाट के समय पृथ्वी के चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में कलश गिरा था।
उस समय चंद्रमा ने कलश से अमृत के निकलने, सूरज ने कलश के फूटने, गुरु बृहस्पति ने दैत्यों द्वारा छीनने एवं शनि ने देवेंद्र के भैय से कलश की रक्षा की। अमृत के लिए 12 दिनों तक लगातार युद्ध हुआ था। जिस समय चंद्रमा आदि ने उस अमृत कलश की रक्षा की थी , उस समय की वर्तमान राशियों पर उक्त रक्षा करने वाले चंद्र् , सूर्य आदि ग्रह जब आते हैं तब उस समय कुंभ पर्व का योग होता है अर्थात जिस वर्ष जिस राशि पर सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है उसी वर्ष इस राशि के योग में जहां-जहां अमृत कुंभ का अमृत बिंदु छलक कर गिरा था वहां वहां कुंभ मनाया जाता है।
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