भारतीय धर्म दर्शनों के अनुसार ऋषि- महर्षि, संत-परमात्मा सृष्टि के रहस्यों और परमात्मा की प्राप्ति हेतु निर्जन वनों, हिम कंदराओं तथा बर्फीली चोटियों को अपनी साधना का उपयुक्त स्थल मानकर वहां रहते आए हैं। ये ऋषि महर्षि एवं संत अपनी साधना का कुछ अंश जन कल्याण के लिए राजाओं के माध्यम से प्रसाद रूप में वितरित करते थे। ये श्रेष्ठ जन कुंभपर्व का योग आने पर जन-सामान्य को ज्ञान विज्ञान और धर्म-अध्यात्म का उपदेश देते थे तथा अपनी तपस्या के अर्जित फल का कुछ अंश प्रदान करते थे। ऐसा कहा जा सकता है की वही परंपरा 'कुंभ महापर्व' या 'कुंभ' मेले का रूप धारण करके हजारों वर्षों से अनवरत चली आ रही है।
यह ब्लॉग महाकुंभ-2025 पर आधारित है। इसके माध्यम से महाकुंभ 2025 से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को साझा किया जाता है ।
रविवार, 20 अक्टूबर 2024
Mahakumbh 2025: कुंभ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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